वर्षा की बूँद
एक दिन था मैं
अपने छत पर खड़ा,
थका-माँदा-सा था,
अपने आप में खोया,
बैठा एक कोने में था मैं मुरझाया,
अचानक एक बूंद आ लगी मेरे तन से
मैं भाव विह्वल हो गया मन से,
धीरे धीरे मैं लगा भींगने,
जब आधे भीगे अवस्था में आया
अपने आपको मैं ऊर्जावान पाया,
थकावट तन मन का
क्षण भर में ही क्षीण हो गया,
तन, मन मेरा भींगकर भर गया
उत्साह व जोश से,
यही है सौंदर्य,
वर्षा के बूंदों की,
यही है सौंदर्य प्रकृति की |