** वर्षा ऋतु **
** गीतिका **
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झरने नाले परनाले सब, देखो खूब बहे।
वर्षा ऋतु की ऐसी मस्ती, सब ख़ामोश सहे।
नाम न लेती जब रुकने का, रिमझिम वर्षा है।
भरे हुए सब नदी सरोवर, होकर तृप्त रहे।
उछल कूद है जारी देखो, मस्ती का आलम।
झींगुर मेंढक और पपीहे, लगाते कहकहे।
पूर्व समय से वर्षा ऋतु ने, दस्तक दे दी है।
इसी हेतु मानव के देखो, सब अनुमान ढहे।
बहुत हुआ खिलवाड़ धरा से, रोक लगाएं अब।
बनें जागरुक आज सभी हम, चिंतन मनन गहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)