वर्षा ऋतु के बाद
छाई हरियाली बहुत,वर्षा ऋतु के बाद।
गूँज उठा चारों तरफ,अद्भुत मंगल नाद।
बूँदें पड़ते ही धरा,देती जीवन दान।
अंतर अंकुर फूटता,स्वंभू ब्रह्म समान।
फैली मधुमय चाँदनी,नील गगन के तीर।
बिखर रहा मधुमास रस,खड़ा चाँद गंभीर।।
कूट-कूट कर भर दिया, सुन्दरता भरपूर।
देवलोक फीका पड़ा,ऐसा अनुपम नूर।।
बहुत मनोरम दृश्य है,न कीचड़ है न धूल।
तेज हवा में झूमते,धवल कास के फूल।।
फूलों में खुश्बू भरा, औ’ सब्ज़ी में स्वाद।
तरोताजगी ज़िन्दगी, सच वर्षा के बाद।।
शरद खड़ी है सामने, लिए पर्व त्योहार।
धरती पर बिछने लगी, कोमल हरश्रृंगार।।
लतिका मधुरस भर रही,बिछी मखमली घास।
नव किसलय की लालिमा,भरे हर्ष-उल्लास।।
धरती की शोभा बढ़ी,हसीं सुबह औ’ शाम।।
स्वर्ग दिखाई दे धरा,जीवों का सुखधाम।।
जीवन का अस्तित्व है,बर्षा की हर बूँद।
हर्षित आनंदित जगत,निज नयनों को मूँद।।
वर्षा रानी की कृपा,छाया मंगल मोद।
हरी-भरी धरती सुखद,करने लगी विनोद।।
-लक्ष्मी सिंह