वर्दी (कविता)
वर्दी (कविता)
वर्दी के है विभिन्न प्रकार,
सब वर्दियों की अपनी शान।
अनेक रंगों कि वर्दी हमारी,
विभिन्न रुपों में बदली हैं।
वर्दी की है शान निराली
जो पहने उसकी बढ़ती मान।
कुछ वर्दी पहन इतराते हैं,
कुछ वर्दी पहन लोगों को डरातें हैं।
कुछ लोग इसे इज्जत दिलवाते,
कुछ लोग कलंकित कर देते हैं।
कुछ लोग पहन करते जनता पर राज,
कुछ लोग पहन जनता को डराते हैं।
कुछ लोग वर्दी की लाज बचाते हैं
कुछ लोग वर्दी की लाज गंवाते हैं।
ईमानदारों को मजबूत बनाती वर्दी।
बेईमानों को मजबूर बनाती वर्दी।
जब दुनिया खुशियां मनाती है,
तब यह वर्दी फर्ज निभाती है।
चलो वीर-विरांगनाएं आज हम मिलकर,
फर्ज निभायें वर्दी के सम्मान का।
दुःख- दर्द मिटाये हम सब मिलकर,
अपने भारतवासी और भारत मां की।