वर्तमान गठबंधन राजनीति के समीकरण – एक मंथन
आगामी चुनावों के संदर्भ में देश में राजनीतिक सरगर्मियां जोर- शोर से है।
विपक्ष भारतीय जनता पार्टी बहुमत की सरकार के विरोध में गठबंधन कर एक राजनैतिक विकल्प प्रस्तुत करने में प्रयासरत् है।
इस परिपेक्ष्य में विचार करने पर प्रमुख रूप से दो मुद्दे प्रस्तुत होते हैं,
प्रथम, क्षेत्रीय पार्टियों का आपसी तालमेल ,
द्वितीय, क्षेत्रीय पार्टियों की केंद्र सरकार में भागीदारी
हेतु रुचि।
यदि गंभीरता से विचार किया जाए क्षेत्रीय पार्टियों की अधिकांशतः रुचि क्षेत्रीय समस्याओं पर ध्यान देकर उनके निराकरण हेतु समाधान खोजने एवं संसाधन जुटाने की है , जिसमें क्षेत्रीयतया के राजनीतिक वर्चस्व के लिए समकक्ष पार्टियों से संघर्ष भी शामिल है।
अतः विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों का केंद्र में सरकार गठन हेतु विपक्षी राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने में एकजुट होना एक प्रश्नवाचक चिन्ह है।
इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं की अपनी -अपनी व्यक्तिगत आकांक्षा एवं अभिलाषाऐ है ,
जिसकी पूर्ति हेतु गठबंधन निर्मित केंद्र में राजनीतिक विकल्प किस हद तक उनके लिए सफल सिद्ध हो सकता है, यह एक विचारणीय विषय है।
इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय पार्टियों के अपने -अपने मुद्दे हैं , जिनके आधार पर वे क्षेत्रीय चुनावी रणनीति तैयार करते हैं , और चुनावी घोषणा पत्रों में वोट बैंक नीति के चलते उन मुद्दों का समावेश एवं समाधान प्रस्तुत करते हैं ,
जिसमें लोक लुभावने वादों का समावेश भी होता है।
अतः क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न पार्टियों की आम सहमति बनना एवं वोट बैंक में भागीदारी करना एक दुरूह प्रक्रिया है , एवं व्यवहारिकता से परे है।
अतः क्षेत्रीय स्तर पर विरोधी पार्टियों का केंद्र में सरकार बनाने हेतु एकजुट होना असंभव सा प्रतीत होता है।
वर्तमान स्थिति में कांग्रेस अथवा अन्य पार्टी स्वयं को एक मजबूत विपक्ष के रूप में प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं ,
जिसके चलते वे विपक्ष गठबंधन के नेतृत्व को संभालने के लिए क्या सक्षम है ?
एवं क्या अपने शीर्ष नेता को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं ?
सर्वप्रथम किसी भी गठबंधन हेतु एक कुशल एवं सबल नेतृत्व की आवश्यकता होती है ,
जो विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में तालमेल बैठाकर उन्हें आम सहमति के लिए राजी कर सके,
एवं गठबंधन में शामिल समस्त पार्टियां को उन्हें गठबंधन के नीति निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य कर सके।
परंतु विस्तृत विवेचना करने पर यह ज्ञात होता है कि कांग्रेस आंतरिक समस्याओं एवं व्यक्तिगत मनमुटाव की वजह से विभिन्न घटकों में असंतोष का सामना कर रही है,
एवं उसमें पार्टी के प्रति समर्पित नेताओं की कमी प्रतीत
होती है ,
जिससे उनके व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते दल बदल की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त विभिन्न दलों के शीर्ष नेताओं की प्रधानमंत्री पद के लिए आकांक्षा एवं अभिलाषा गठबंधन में एक रोड़ा साबित हो सकती है।
अतः केंद्र में गठबंधन सरकार का विकल्प किस हद तक कारगर होगा यह एक यक्ष प्रश्न है।