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14 Oct 2018 · 4 min read

वर्तमान की गौण शिक्षा प्रणाली एवं कोचिंग सेंटरों का प्रभाव

वर्तमान की गौण शिक्षा प्रणाली एवं कोचिंग सेंटरों का प्रभाव
शहरों की प्रत्येक गली और चौराहों पर आज कोचिंग सेंटरों के बैनर लगे हुए हैं। जो आम आदमी का ध्यान अपनी ओर खींच कर उन्हें अपने बच्चों को कोचिंग सेंटर में भेजने के लिए विवश कर देते हैं। कोचिंग कक्षाओं का जितना बड़ा नाम, उतना ही ज्यादा पैसा। इतना ही नहीं वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह भी लगाता है कि बच्चे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करें या ना करें ? लेकिन उसे किसी भी नौकरी के लिखित और मौखिक परीक्षा के लिए कोचिंग लिए आवश्यक है। क्या हम यह माने कि स्कूलों और कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा गुणवत्ता एवं सफलता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती? फिर सरकार को शिक्षा व्यवस्था में इतना पैसा लगाने की आवश्यकता ही कहां है? ऐसी परिस्थितियों में और सफलता कोचिंग कक्षा से ही मिल सकती है, तो क्यों माता-पिता अपने बच्चों को कितने ही वर्ष स्कूल में भेजकर उनका समय बर्बाद करते हैं। आइए,यह जानने का प्रयास करें कि क्या फर्क है? स्कूली शिक्षा एवं कोचिंग कक्षाओं में। स्कूली शिक्षा में छात्र को एक निर्धारित पाठ्यक्रम एवं कIलांशो के हिसाब से पढ़ाया जाता है । मनोवैज्ञानिकों की माने तो यही उनकी उम्र एवं चिंतन शक्ति को ध्यान में रखकर किया जाता है। लेकिन कोचिंग कक्षाओं में इसका कतई ध्यान नहीं दिया जाता। इन केंद्रों पर शिक्षा का मूल भाव बच्चे द्वारा दी जाने वाली फीस के हिसाब से किया जाता है। आपकी जेब मे अगर ज्यादा पैसा है तो एक वर्ष में करवाया जाने वाला पाठ्यक्रम मात्र एक महीने में ही करवाया जा सकता है।ज्यादातर शिक्षक स्वयं को स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों के काबिल न मानकर उच्च श्रेणी अध्यापक मानते हैं और अपना कोचिंग सेंटर खोल देते हैं। वह समय – समय पर स्कूल बदल कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेते हैं और अपने नाम के साथ उन सभी शिक्षण संस्थानों के नाम जोड़ देते हैं। जिससे आस-पास के सभी छात्र उन से परिचित हो जाते हैं।शिक्षण के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले यह अध्यापक कक्षा में इस बात पर जोर देते हैं कि वह पाठ्यक्रम को एक छोटी अवधि में सरलता से अपनी कोचिंग सेंटर पर पूरा करा सकते हैं।आज छात्रों और अभिभावकों में ’ए’ग्रेड लेने की होड़ लगी हुई है। लेकिन परिणाम क्या निकलेगा? यह कोई नहीं सोचता। छात्रों को माता-पिता दिन की शुरुआत के साथ ही कोचिंग सेंटर पर छोड़ देते हैं।शाम को फिर से बच्चा उसी कोचिंग पहुंच जाता है।जो समय बच्चों की खेलकूद,विश्राम, गृह कार्य करने का था, अब वह कोचिंग सेंटर में ही निकल जाता है। सीधा सा अर्थ है -जब उसे कोचिंग कक्षा में आसानी से गृह कार्य करवाया जाएगा तो वह अपना दिमाग क्यों खर्च करेगा? आज पैसों के बल पर आप किसी भी स्तर की शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। फिर चाहे वह बड़े अधिकारी के पद की ही क्यों ना हो। वर्तमान में अधिकतर स्कूलों ने इस व्यवस्था का सहारा लेकर अलग से कोचिंग देने की व्यवस्थाएं भी प्रारंभ कर दी है।कहने को तो छात्र स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहा है। लेकिन वास्तविक रुप से उसे कोचिंग का अभ्यस्त कर दिया गया है। अगर यही बात है तो क्यों नहीं स्कूलों को कोचिंग सेंटर में ही तब्दील कर दिया जाए? उनकी मान्यता पर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है। सरकार में बैठे बड़े- बड़े पदाधिकारियों को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।आज स्कूल मात्र कोचिंग सेंटर बनकर रह गये है।आज सभी जागरुक नागरिकों को अपने बच्चों को एसे शिक्षण संस्थानों से बचाना चाहिए जो शिक्षा का मंदिर ना होकर मात्र एक पैसे कमाने की दुकान रहे गए हैं। वर्तमान में बच्चों के नैतिक मूल्यों की गिरावट का भी यह एक मुख्य कारण है।जब एक बच्चा मोटी फीस देकर शिक्षा ग्रहण करता है तो वह गुरु और शिष्य के संस्कार परंपरा और मूल्यों को पूरी तरह से नकार देता है।क्या सरकारी संस्थानों के अध्यापकों पर ही कोचिंग नहीं देने का दबाव बनाकर सरकार इन संस्थानों को खुलेआम प्रोत्साहन दे रही है ? क्या इन कोचिंग कक्षाएं देने वाले अध्यापकों पर कोई भी नियम लागू नहीं होते? सुनने में तो यहां तक आता है कि प्रत्येक कोचिंग संस्थान अपने नियम बनाकर सरकार की कमजोरियों को आइना दिखा रहे हैं। सवाल यह उठता है यदि कोचिंग संस्थान बेहतर शिक्षा दे रहे हैं। तो क्या स्कूल कालेज एवं महाविद्यालय को मात्र एक डिग्री सर्टिफिकेट लेने का संस्थान ही कहा जाए। आइए,इस पर एक कदम बढ़ाकर वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार कर बच्चों का कोचिंग का प्रति रुझान के विषय में सोचे।एक छोटी सी पहल के माध्यम से मैं समाज एवं सरकार के रवैये में बदलाव की अपेक्षा कर रहा हूं कि स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर जोर देते हुए छात्रों एक गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करें । जिससे माता -पिता बच्चों की शिक्षा में होने वाले मोटे खर्च से बच सके।आगामी देख के माध्यम से मैं समाज के कुछ अन्य ज्वलंत विषय पर भी प्रकाश ड़ालूगाँ।

Language: Hindi
Tag: लेख
1679 Views
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