वर्ण-शब्द उत्पत्ति
वर्ण उत्पत्ति हुई है कहाँ से…
ये शब्द कथा है बहुत पुरानी ,
ध्यान से सुनो हे! मित्र हमारे
शायद हो ये जानी पहचानी !
हाँ श्रावण मास का मौसम था
नटराज प्रसन्नचित्त नृत्य किये ,
झूम उठा डमरू भी संग-संग
एक भीषण स्वर में नाद किये !
ऋषि पाणिनि कुटिया में लेटे
अचेत अवस्था में थे पड़े हुए ,
यह घोर गर्जना सुनकर मुनिवर
नंगे पांव स्वर दिशा में दौड़ पड़े !
देख रूप नटराज का मुनिवर
साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया ,
स्तुति सुन मन ही मन शिव ने
फिर ज्ञान-चक्षु वरदान दिया !
डमरू से स्वर निकला 14 बार
महर्षि ने सूत्र लिखे एक हरबार ,
बन गए चौदह सूत्र ये शब्द सार
जो निम्न लिखित थे इस प्रकार !
अइउण्, ऋलृक् ,एओंङ् ,ऐऔच्
चारो को स्वर अंश में स्थान दिया ,
बचे हुए दस व्यंजन में रखकर..
मुनि ने कुटिया में प्रस्थान किया !
मन व्याकुल था अपूर्ण कार्य से
पुनः व्यंजन वर्णों के भाग किये ,
अपने ज्ञान चक्षु और अभ्यास से
उन भागों के भी कई भाग किये !
महर्षि पाणिनि ने उस स्वर से ही..
शब्दो के थे एक-एक वर्ण चुने,
जब वर्णमाला विस्तार हुआ तो
वर्णों से मिलकर मंजुल शब्द बने !
कुछ सार्थक,कुछ निरर्थक
भावों का अद्भुत मेला था
व्याकरण क्षेत्र की क्रांति में
अष्टाध्यायी ग्रन्थ अकेला था ..!
नोट:-
•••स्वर सूत्र •••
१. अ इ उ ण्
२. ॠ ॡ क्
३. ए ओ ङ्
४. ऐ औ च्
•••व्यंजन सूत्र••
५. ह य व र ट्
६. ल ण्
७. ञ म ङ ण न म्
८. झ भ ञ्
९. घ ढ ध ष्
१०. ज ब ग ड द श्
११. ख फ छ ठ थ च ट त व्
१२. क प य्
१३. श ष स र्
१४. ह ल्
काव्य -स्वरचित
सूत्र – “अष्टाध्यायी” से
‘” राहुल पाल “”