वरिष्ठ गीतकार स्व.शिवकुमार अर्चन को समर्पित श्रद्धांजलि नवगीत
ठंडा-ठंडा
और सुहाना,
उखड़ा पीपल
बहुत पुराना ।
बहुत पुराना,बहुत पुराना ।
कानों में
पत्तों की सर-सर
अब भी
गूँज रही है,
पीड़ा ने
ख़ुद पीड़ित होकर
अपनी
बात कही है ।
ख़त्म हुआ
मकरंद बाग का
बंद मधुप का
आना-जाना ।
उखड़ा पीपल
बहुत पुराना ।
बहुत पुराना,बहुत पुराना ।
आँखों में
शाखों की थिरकन
अब भी
तैर रही है ।
श्रद्धा ने
अब तक श्रद्धा की
पीड़ा
बहुत सही है ।
रूठ गई
है, गंध हवा से
क्षीण छंद का
ताना-बाना ।
उखड़ा पीपल
बहुत पुराना ।
बहुत पुराना,बहुत पुराना ।
गन्ने का
सब रस सूखा है
चुप हैं
बरगद,अमुआँ,पाकल,
इमली का
पानी उतरा है
सूखे
गूलर,जामुन,कटहल ।
पिरा रही
है,उड़न परों की
छुटा चोंच का
आबो-दाना ।
उखड़ा पीपल
बहुत पुराना ।
बहुत पुराना,बहुत पुराना ।
ठंडा-ठंडा
और सुहाना,
उखड़ा पीपल
बहुत पुराना ।
बहुत पुराना,बहुत पुराना ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।