वरना गैरों पर यहाँ करे कौन विश्वास
बेशक हँसना चाहिए, रखकर इतना ध्यान।
अतिशय हँसने से हुआ, अपना ही नुकसान।।
जीने की ख्वाहिश नहीं, मरना नामंजूर।
जीवन इक संग्राम है, लड़ना है भरपूर।।
जिनका हर निर्णय मुझे, रहता था मंजूर।
आज वही करने लगे, मुझको खुद से दूर।।
धोखा दे जाते सदा, अपने हीं कुछ खास।
वरना गैरों पर यहाँ, करे कौन विश्वास।।
घना कुहासा देखकर, मन जाता है डोल।
सिगनल साइटिंग बोर्ड को, हाथ उठाकर बोल।।
सिगनल के प्रति साथियों, रहना सदा सतर्क।
यदि होगा इसपैड तो, जीवन होगा नर्क।।
शेड नोटिस में हो रहा, ऊपर नीचे नाम।
सबको सब कुछ मिल रहा, काम और आराम।।
बदल रहे दल रोज दिन, साध रहे निज स्वार्थ।
कहते हैं मैंने किया, जनहित में परमार्थ।।
जिस पत्तल में खा रहा, करे उसी में छेद।
नेता कहने में उसे, मुझको होता खेद।।
जबतक फल मिलता रहा, स्वाद लिया भरपूर।
आज वही बतला रहा, खट्टे हैं अंगूर।।
पीली साड़ी पर कहर, ओठलाली यह लाल।
जबसे देखा आपको, रहा न खुद का ख्याल।।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य