लगाया करती हैं
वो चुप हैं.. उनकी ख़ामोशी
कुछ बात बताया करती है।
कुछ मीठा, कुछ तीखा-सा,
इल्जाम लगाया करती है।
हम उनसे दूर हुए कब थे,
वो मेरे पास हुए कब थे
बदला-बदला-सा मौसम ये
अहसास कराया करती है!
अंदर कुछ टूटा-फूटा-सा,
कोई है खुद से रूठा-सा,
ये टीस नमी इन आंखों में
जाने क्यों लाया करती है!
सारी नफ़रत,सारा गुस्सा,
हंसते-हंसते भी पी लेते हैं,
लेकिन ये खामोशी, सचमुच
दिल को चुभ जाया करती है!
©अभिषेक पाण्डेय अभि