वरण / हरण ।
बच्चा ! नौकरी में हो ! जबाब देने में उसकी घिग्गी बंद हो गयी थी ; वह उसी सड़क को कातर दृष्टि से निहारते हुए यह सोचने लगा था कि कल वह इसी सड़क पर था और किसी तरह स्व-दम पर और ईश्वर सहारे आज यहाँ पॅहुचा था लेकिन आज पुनः इसी सड़क पर ! तभी दूसरी तरफ अस्सी साल के बुजुर्ग की आवाज आयी कि ” कहाँ ? खो गये शुकेस !” वह हड़बड़ाकर वर्तमान में आकर बोला “कहीं नहीं बाबा जी ! बस यूॅ ही ! अरे ! आपके रहते मुझे नौकरी से कौन निकालेगा। आप तो अंतर्यामी हैं । आपकी मर्जी के बगैर यहाँ पत्ता तक नहीं हिलता ।” उनका सवाल पुनः वही था वह भी विषैली मुस्कान लिए और शुकेस ने फोन काट दिया बिना कोई जबाब दिए और ईश्वर को याद करता बस सड़क को निहारता अपने घर पॅहुच गया था ; सड़क पर सवार तो अपने दम से था लेकिन धक्का दे उतार जरूर दिया गया था ! ईमानदार जो ठहरा ।
और जिले-जवार के बाबा जो ठहरे इस देश की डिफेंस के बाद दूसरे नंबर सेवा के शीर्षस्थ रहनुमा और नाती से बस यही पूॅछ रहे थे कि बच्चा…! नाती ने किसी तरह वरण किया था और बाबा ने हरण ।