वयंग्य-कविता
कोई गांठैं लगाता है कोई फंदा बनाता है ,
कोई तो जहर का प्याला मीरा को पिलाता है ।
कोई तो शिकवा करता है कोई मौके भुनाता है,
कोई तो जहर का खंजर हर दम ही चलाता है।।
कोई गाँठें …….
कोई तो कोशिश करता है हवाओं को भी बाँधने की ,
कोई तो कोशिश करता है शरहदों को लाँघने की ।
कोई तो चाहता औरों की शाँशों को भी कैद करना ,
कोई तो कोशिश करता है इंसानों को हाँकने की ।
कोई बेबस मजबूरों पै भी चाबुक चलता है।।
कोई गाँठें ………….
कोई तो रोज ही शतरंज की ही चाल चलता है ,
कोई मौकापरस्त की तरह पैंतरे बदलता है ।
कोई लेना नहीं छोड़ता कभी जो मौके का फायदा ,
फस जाये किसी की चाल में तो हाथ मलता है ।
कोई करके नहीं परवाह औरों को जलाता है ।।
कोई गाँठें …………….
कोई तो प्रेम करता है कोई तो वार करता है ,
कोई इकरार करता है कोई इनकार करता है।
क्या लोग आज हैं समझना है कठिन है लेकिन ,
कोई तो अपनों से ही वेवजह तकरार करता है ।
कोई गैरों को हँसाता है कोई अपनों को रुलाता है।। कोई गाँठें ……..
डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज