वफा का हर वादा निभा रहे है।
वादा करके तोड़ देना उनकी फितरत में शामिल है।
एक हम है जो उनसे वफा का हर वादा निभा रहे है।।1।।
उनकी तरह नज़रों की मयकशी हमको आती नही।
हम हंस कर सबसे ही अपने दिल का गम छुपा रहे हैं।।2।।
उसकी बेवफाई का हम क्या करे शिकवा गिला।
झूठी खुशियों के साथ हम अपनी जिंदगी बीता रहे हैं।।3।।
मज़हब के नाम पर वो सब आपस में लड़ रहे है।
अपने ही हाथों से वो अपना आशियां जला रहे है।।4।।
हुस्न वाले अपनी बेहयाई को सीरत का नाम दे रहे हैं।
शर्म ओ लिहाज़ का अपने बदन से पर्दा उठा रहे हैं।।5।।
वक्त के साथ अब हमने खुद को ढाल लिया हैं।
अपनी इस जिंदगी को फिर से जीना सिखा रहे हैं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ