वफ़ा लिपट कर थी रात भर रोई
कही गुम है शदा इसकी खबर क्या।
जब हमारे हर दफा अब सबर क्या।।
मका भी फुर्सत से लूटा गया था।
लुट गया सब रखे भी तो नजर क्या।।
वफ़ा लिपट कर थी रात भर रोई।
गिरा अश्क जिधर देखे वो अधर क्या।।
हुई खत्म मुहब्बत दरमियां हमारे।
ज़हाँ मैं है बता कोई अजर क्या।।
मिरी इस हार पर वो खुश है।
बता देखा कभी ऐसा मंज़र क्या।।
उसे याद तक नही आता ‘मित्रा’ ये।
जमी दिल की रहेगी अब बंजर क्या।।
✍?✍?हिमांशु मित्रा ‘रवि’