वन्दे मातरम् का गीत सुबह और शाम जो गाये
कश्मीर में सेनिको से दुर्व्यहार करने वाले गद्दारों को सबक सिखाने के लिये है ये कविता
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खाते हो जो थाली में
उसी में छेद करते हो ।
पिलाया दूध आँचल का
उसी से बैर करते हो ।
तुम्हें कब शर्म आएगी
नहीं जीने का हक तुमको ।
कि जिसने जिंदगी दी है
उसी पर वार करते हो ।।
फ़क़त कश्मीरियत के नाम
करो तुम रोज ही दंगे ।
नही खाने को रोटी है
करो नित नाच क्यों? नंगे ।
तरस जाओगे पानी को
जो हम अपनी पर आजायें ।
रहेगा न निशां बाक़ी
जो नक्शे से मिटा देंगे ।।
जो दुश्मन का भला चाहे
चला वो पाक को जाये ।
रहे कश्मीर में वो ही
जो भारत देश को चाहे ।
कहें हम फक्र से अब तो
कि वो ही हिंदुस्तानी है ।
वंदे मातरम् का गीत
सुबह और शाम जो गाये ।।
सुनील सोनी “सागर”
चीचली (म.प्र)