वन्दन है
वन्दन है उस गर्भ का जहाँ रहा नौ मास।
जननी का मुझको प्रभो! मात्र बना दो दास।
मात्र बना दो दास, पिता की सेवा कर लूँ।
पापार्जन को त्याग, पुण्य से झोली भर लूँ ।
माता और पिता चरणो में अर्पित चन्दन।
सुखदा जिनकी गोद, सदा उनका है वन्दन।।
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ