वनों पर कहर
खुदा की बनाई हंसी प्रकृति ने खेल गजब दिखाया है,
अब तक बरपाया इंसा पर कहर अब वनों को भी जलाया है,
क्रोध इतना प्रकृति का देखा नहीं कभी किसी ने,
इसलिए आज बेजुबान का मासूम दिल भी घबराया है,
सजा हमारी गलतियों की आज खुदा खुद को ही दे रहा,
अपनी बनाई इनायत को ही अपने हाथों तबाह कर रहा,
न जाने कितने लाचार मासूम इस क्रोध की चपेट में आ गए,
जिसने लिया जन्म यहां अभी,
वो दुनिया देखने से पहले ही इसे अलविदा कह गए,
क्या कसूर उन मासूम फूल और हरियाली का,
जो इस कद्र वो बर्बाद हुए,
तापमान बढ़ा हमारी वजह से और हमें ही छोड़,
बाकी सब इस काल का बेवजह ही ग्रास बने,
करते नाश हम ही सबका फिर सजा हम क्यूं न पाते हैं,
क्यूं खुदा की अदालत में हम बेगुनाह और बाकी गुनहगार बन जाते हैं,
अब तो संभल जा ए इंसान क्यूं तकलीफ इतनी देते हो,
क्यूं भूल जाते वक़्त आने पर हर किए की सजा वो ही नहीं तुम लोग भी पाते हो