*वनिता का सङ्ग* (लावणी छंद) आधारित गीत
मन की छोटी सी अभिलाषा, निश्चल प्रेम अपार रहे।
वनिता का ही सङ्ग हमेशा, जीने का आधार रहे।।
पतझड़वत जीवन था मेरा, रँग तुम्हीं ने भरा शुभे।
हरित हुआ मधुमास सरीखा, नंदनवन सा हरा शुभे।
अंतर्मन में ज्योति जलाकर, मंदिर इसे बना डाला।
नेह जनित बढ़नी कर लेकर, साफ किया कुण्ठा जाला।।
हो मीठी तकरार भले पर, शुद्ध सुघर व्यवहार रहे।
वनिता का ही सङ्ग हमेशा, जीने का आधार रहे।।
छोड़ा घर बाबुल का तुमने, जीवन में मेरे आई।
पाट सके दुख की खाई सब, प्रेम जनित गारा लाई।
प्रेम त्याग विश्वास समर्पण, से जीवन को महकाया।
दग्ध पड़ी थी वसुधा उर की, सोम प्रेम का छलकाया।।
खिला रोम पुलकित मन मेरा, सदा यहीं संसार रहे।
वनिता का ही सङ्ग हमेशा, जीने का आधार रहे।।
खण्डित होंगे घट खुशियों के, दूर चली तू यदि गई।
मन भीतर आभासित होगा, जिन्दा मछली तली गई।।
इस गाड़ी के हम दो पहिये, चलते रहें समान सदा।
वातावरण रहेगा हर्षित , होगा मंगल गान सदा।।
घर संसार सुखद अरु सुंदर, सब तेरे अनुसार रहे।
वनिता का ही सङ्ग हमेशा, जीने का आधार रहे।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण,
बिहार