वनक पुकार
सुन वन के आह्वान,
गाछक सरसराहट सुन,
पातक छाहरि मे रहैत,
धड़कन के आवाज सुन ।
माटि के छै अपन गंध , .
पवन मे हमर गीत,
धरतीक गोद मे रहि,
हम हिनक मीते रहि ।
हमर गीत मे बसल,
नदीक के सभ लहरि,
हमरा रंगरन्जमे दौड़ैत,
वनकक एक-एक डारि।
अलग नहि होउ हमरासँ ,
जड़ि सँ नहि कखनो काटि,
हम छी एहि धरतीक पुत्र ,
एहि धरतीसँ पृथक नहि बाटि ।
हमर संस्कृति अछि अमूल्य ,
हमर रीति-रिवाज अछि विशेष,
हमर पहिचान अछि हमर,
नहि मेटि, ई हमर अछि आशा ।
—-श्रीहर्ष—–