वतन के शहीदों के हवाले एक नज़म
ये जमी कह रही वो फलक कह रहा….।
खूँ से लिपटा हुआ वो सड़क कह रहा..।
देते कब तक रहेंगे खिराजे अक़ीदत…
चीख़ करके ये दिल बे झिझक कह रहा।
कितने औलाद होंगे जुदा माँओं से…….
कितना रोयेगा धोएगा भारत मेरा…..।।
रोज़ ऐसे ही हमले जो होते रहे……..
तो कितने लाशें उठाएगा भारत मेरा..।।
रोके माँओं का हाँ वो सिसक कह रहा।।
चीख़ करके ये दिल बे झिझक कह रहा।
ज़ख़्मों पे अब रफू कितना करवाओगे..।
दिन में तारे उन्हें कब तुम दिखलाओगे..।।
बस हमे इतना बतला दो ए मोदी जी…..
छप्पन इंच का कब सीना दिखलाओगे।।
उन शहीदों के खूँ का महक कह रहा.. ।।
चीख़ करके ये दिल बे झिझक कह रहा.।
है अगर तेरे बस में नही कुछ तो फिर….
दो इज़ाज़त हमें रन में तुम जाने की…।।
उनके छक्के छुड़ा देंगे हम इंडियन…..
ताकि जुर्रत करें फिर से न आने की…..।।
आग सीने में उठता लपक कह रहा…।।
चीख़ करके ये दिल बे झिझक कह रहा।।
✍️ शाह आलम हिंदुस्तानी