वतन की शान लगते हैं।
एक गजल
मापनी —1222 1222 1222 1222
कभी हैवान लगते हैं कभी शैतान लगते हैं।
नहीं इंसान अब लेकिन यहाँ इंसान लगते हैं।।
उन्ही का हल नहीं मिलता जमाने में कहीं यारो।
यहाँ पर देखने में प्रश्न जो आसान लगते हैं।।
बनाएँ साधुओं का भेष बाबा जो चमत्कारी।
हटा पर्दा उन्हे देखो वही शैतान लगते हैं।।
दिखाकर आंकड़े झूठे करें वादे चुनावी सब।
मुझे नेता यहाँ सारे ही’ बेईमान लगते हैं।।
वतन की सरहदों पर जो लगाते जान की बाजी।
तिरंगे को वही बेटे वतन की शान लगते हैं।।
प्रदीप कुमार