वज़्न – 2122 1212 22/112 अर्कान – फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन/फ़इलुन बह्र – बहर-ए-ख़फ़ीफ़ मख़बून महज़ूफ मक़तूअ काफ़िया: ओं स्वर रदीफ़ – में
#मतला
मुहब्बत से भरे ख़यालों में।
यूँ ही उलझे रहे सवालों में।
#शेर
मर्ज़ कुछ लाइलाज़ होते हैं
लोग झुकते हैं जा मज़ारों में।
#शेर
उसने सूरज को क़ैद रक्खा है,
रौशनी बँद है इन दिवारों में ।
#शेर
एक से एक क़ीमती चीज़ें,
ख़ूब बिकती हैं इन बज़ारों में।
#गिरह
ज़िन्दगी जो सबक सिखाती है,
इल्म होता नहीं क़िताबों में।
#शेर
वो नज़र से सवाल करते हैं,
मुस्कुरा देते हैं जवाबों में।
#शेर
देखकर चाँद मेरी बाँहों में,
थी बहस छिड़ गई सितारों में।
#मक़्ता
रोग का इल्म ना तुम्हें ‘नीलम’
खुद को गिनती हो क्यों बिमारों में।
नीलम शर्मा ✍️