वजह
कल रात
प्यार करने की वजह मांगी थी न!
ठीक ही तो किया।
बेसबब तो किसी से मेल-मिलाप भी न हो,
फिर तो ये प्यार है।
लेकिन फिर भी यह बात
कब से मथे जाती है जी को कि
ढाई अक्षर का होते हुए भी
अज़ीम होने के कारण प्यार
वजह का मोहताज तो कभी न था।
कारण कि जहाँ मतलब होता है न,
वहाँ प्यार नहीं होता।
किसी भी हेतु का हवाला देकर
मैं छलूँगा ख़ुद को और अपने ख़ुदा को भी
जिसने प्यार नाम की चीज़ बनाई तो ज़रूर
मगर वजह जैसी नाचीज़ से बिल्कुल अलहदा!
फिर भी मैं तुम्हारे सवाल को तर्ज़ी देते हुए
जवाब देने की हरसम्भव कोशिश करूंगा।
खंगालूँगा खुद को और
उधेड़ूगाँ बीते समय के उस सफीना को
जिसके पन्नों में तब के
खूब खूबसूरत पल और स्मृतियाँ कैद हैं,
जब मुझे तुमसे प्यार हुआ था।
कितने वजह गिनाऊँ तुम्हें,
उँगलियाँ भी तो दस ही हैं तुम्हारे पास।
तुम्हारे अपूर्व अत्र की बात करूं,
या फिर ज़िक्र हो सुरीले तुम्हारे स्वर का!
बेदाग तुम्हारे चरित्र की हो चर्चा,
या तुम्हारे व्यवहार-कुशलता की लूँ ओट।
सब कुछ तो है जो मुझे तुम्हारी ओर भींचे रखता है।
तुम्हारा साथ मानो चिल्ल-पों सी ज़िन्दगी में
मनुहार का पंखा।
और तुम्हारे हाथ मानो वह मसनद
जिस पर लेट चैन की सांस का हो अहसास!
सीखे हैं मैंने इसी साथ के मार्फ़त कई बातें
जो ताज़िन्दगी मेरे साथ रहकर मुझे मैं बनाए रखेंगी।
मैंने सीखा है कि विकलता तिलिस्म है
बल्कि प्यार तो धीरज का, सब्र का नाम है।
प्यार मतलब तुम्हें एकटक तकते रहना
और फिर थककर तुम्हारे हाथ पर सो जाना।
माने इस उलझन में रहना कि तुम्हें देखूँ या
तुमसे बात करूँ।
तुम्हें विस्मय होता होगा कि इतना भी कोई किसी को
चाहता है क्या!
ओह! कैसे समझाऊँ कि प्यार हदें नहीं जानता।
कैसे दिखाऊँ कि मेरी चाहत सवालों और हवालों की
चहारदीवारी कब की लांघ चुकी है।
कैसे जताऊँ कि तुम्हारे इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं
क्योंकि तुम्हें शायद पता तक नहीं कि
कितना और किस कदर चाहता हूँ तुम्हें।
चाहता हूँ तुम्हें, बेइंतहां चाहता हूँ।
और मुझे यह साबित करने की नौबत न आए
तो मेरा सौभाग्य क्योंकि
प्यार कोई पाइथागोरस का प्रमेय नहीं
कि जिसे सिध्द करने की ज़रूरत हो!
इसे तो महसूसा जाता है सामने वाले को पढ़कर!
हाँ मेरा स्वार्थ भी है तुमसे,
घोर स्वार्थ है!
कि मेरे पास बेवजह खुश रहने की वजह है,
कि तुम्हारा ख्याल करना मेरे रगों में
लहू के साथ आनन्द की मिलावट करता है,
कि तुम्हारे साथ होने से मुझे दुनिया
बहुत ही हसीन लगती है,
कि तुम्हें प्यार करने का अनुभव
हद से बेहद प्यारा है,
कि तुम्हारा ज़िक्र मुझे हर मोड़ पर हर हाल में
मुस्कुराने को मजबूर करता है,
कि मैं मोहताज हूँ मजकूर सभी अहसासों का,
कि तुम्हें खो देने की कल्पना-मात्र भी
ह्रदयविदारक और भयावह है।
मैं स्वार्थी ही तो हूँ।
मैं नामसझ भी हूँ और शायद नटखट भी।
पर जो भी हूँ तुम्हारा हूँ!
जवाब मिला तुम्हें,
बोलो…?