वचन
लघुकथा
शीर्षक – वचन
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‘सुनिये, मुझे कुछ रुपए चाहिए… माँ का फोन आया था,छुटकी के कॉलेज दाखिले के लिए, कल लास्ट डेट है ‘ – सीमा ने अपने पति शरद से कहा ।
रुपये की बात सुनते शरद का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया- ‘मैंने तुम्हारे खानदान का ठेका नही ले रखा है, उन लोगो का बोझा ढोते ढोते मै बर्बाद हुआ जा रहा हूँ, जिंदगी बर्बाद हुई जा रही है,,,,, ‘ – शरद ने झल्लाकर कहा l
– ‘शादी से पहले तो कह दिया था कि मै सारी जिम्मेदारी उठाउगा, तुम तो जानते थे कि मेरे सिवा उनका कोई नही है ‘ –
– ‘ मेरी मति मारी गई थी, और क्या? ‘ – कहते हुए शरद ने सीमा को मारने के लिए हाथ उठाया दिया फिर क्रोध में भन्नाता घर से बाहर निकल गया ।
सीमा एक कोने में बैठ कर सिसकती हुई सोचने लगी – माँ का क्या होगा.. मैंने उसे वचन दिया था कि उसका साथ कभी नहीं छोड़ूंगी… अब उस बचन का क्या होगा….
सीमा को अपने बचपन के दिन याद आने लगे, रूपहली यादें मनः-पटल पर छाने लगी….. आज जिस माँ के लिए कुछ न कर पाने को विवश है, उस माँ ने बचपन से आज तक उसकी हर इच्छा पूरी की थी… बापू के असमय जाने के बाद माँ ही तो थी जो खुद सारे दुःख सह कर भी सुखों की बारिश करती रही…. मनपसंद स्कूल…. मनपसंद कपड़े … खिलौने…. और न जाने क्या- क्या… वह कहती थी – ‘माँ मै राजकुमार से व्याह करुंगी’ – तो माँ झट सीने से लगाकर कहती – ‘क्यों नहीं मेरी लाडो तू तो राजकुमारी है तुझे व्याहने तो कोई राजकुमार ही आएगा’ –
व्याह हुआ भी तो अपनी पसंद के राजकुमार से.. माँ समाज से लड़ी, जाति-बिरादरी के कड़वे वचन सहे…. लेकिन मेरे मन को न मारा… और शरद है कि ,,,,,,,
मेज पर रखा हुआ मोबाइल बहुत देर से बज रहा था, अचानक उसकी तंद्रा टूटी … उठकर मोबाईल उठाया… – “हैलो… ”
माँ का फोन था….. सीमा ने स्वयं को संयत किया – ‘,,,, हाँ, माँ, छुटकी को भेज दो पैसे का इंतजाम हो जाएगा .. उसकी पढ़ाई बंद नही होनी चाहिए’
सीमा ने मोबाइल रख दिया …… और इंतजाम की बात सोचते हुए माँ दिया बक्सा खोला और माँ की दी हुई अंगूठी खोजने लगी।