#वचनों की कलियाँ खिली नहीं
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★ #वचनों की कलियाँ खिली नहीं ★
पसरी हुई चुप की परछाईं
मेरे घर से दर तेरे तक
माना बंदी सच का सूरज
लेकिन कल सवेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
स्मृतिवन में पीर धधकती
धीमे धीमे और धीमे
ताप का छौना उछलता बहुत पर
आँखों के काले घेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
सांसों का पँछी दूर गगन में
और बहुत भीतर भी है
राम तुम्हारी चाकरी
दिन के उजले अंधेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
गणित और विज्ञान की सारी कुँजियाँ
मन के मटमैले थैले में
तन कागद पर भाग्य की रेखा
ठहरती स्वप्नचितेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
पूछो तो कोई पूछो दिल से
क्यों चाल हुई तेरी मद्धम
वचनों की कलियाँ खिली नहीं
अभी धूप द्वंद के डेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
आ जा कि बहुत अब देर हुई
चिरसंगी रे कहाँ है तू
गातों की बगिया फूल सुनहरे
जनम जनम के फेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . .
राजधरम और पाप पुण्य
कर्म अकर्म और स्नान दान
यह सब खेल हमारे साजन
सबकी सीमा तेरे मेरे तक
माना बंदी सच का सूरज . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२