वख्त का तक़ाज़ा है – ज़ख़्म अभी ताज़ा है
वख्त का तक़ाज़ा है –
ज़ख़्म अभी ताज़ा है
कोशिश तो की बहुत
परत दर परत डाल दूँ
छुपा लूं – भुला दूँ
बीते बरस दर बरस
पर अब भी,
जब बहती यादों की शीत लहर
झंझोरते तेज़ बातों के ठोकर
रिसता है तब गरम लहू
पुराने क़िस्से हैं – क़िससे कहूँ
अपनों का ही दिया घाव है
वख्त का तकाज़ा है,
होता है तब महसूस
बचपन के गहरे ज़ख्म
अभी भी ताज़ा हैं