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7 May 2024 · 1 min read

वक्त

वक्त

ढ़लती हुई शाम
समंदर की ख़ामोशी
समा बेफ़िकर
आलम-ए-बेहोशी,

ठहरा गया है वक्त
चांद तू भी रूक
नीमबाज़ आंखों में
छायी है मदहोशी

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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