वक्त
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वक्त
ढ़लती हुई शाम
समंदर की ख़ामोशी
समा बेफ़िकर
आलम-ए-बेहोशी,
ठहरा गया है वक्त
चांद तू भी रूक
नीमबाज़ आंखों में
छायी है मदहोशी
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
वक्त
ढ़लती हुई शाम
समंदर की ख़ामोशी
समा बेफ़िकर
आलम-ए-बेहोशी,
ठहरा गया है वक्त
चांद तू भी रूक
नीमबाज़ आंखों में
छायी है मदहोशी
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”