वक्त
ईश्वर की संरचना बड़ी ही मजेदार है, उन बीते हुए पलों को याद करते हैं तो कभी मन मलिन हो जाता है या फिर एक सुखद मुस्कान भी छू जाती है ! वो म्युनिस्पल स्कूल के चटाइयों पर बैठ “क,ख,घ” टीचर जी के पीछे – पीछे दोहराना, या फिर “दो दुनी चार” का पहाड़ा न याद होने पर मिलने वाली वो सजा भी याद आती है ! पर अब उस वक्त “टीचर जी” के फुटरूल से अपनी गुलाबी हथेलियों के लाल होने का दर्द , अब चेहरे पर एक मुस्कान ले आती है ( वैसे हम आज भी “हिसाब में कमजोर ही हैं” )!
वो चमकदार २० पैसे का कमल छाप सिक्का, जिसको ब्रासो से और भी पॉलिश कर उस “महेश चिनिया बदाम” वाले को “इम्प्रेस” करने की कोशिश भी याद है, वो सब एक मजेदार कल्पना हुआ करती थी के शायद चमक देख “महेश” आधा छटांक ज्यादा दे दे …पर ऐसा न तब हुआ और न ही अब ……
….और ऐसे ही कुछ यादों को समेटने की कोशिश है .. शायद “शब्द” उसे उजागर कर सके