वक्त
तितली की तरह कितना चंचल है यह वक्त भी।
जो दूर से लुभाता है मुझे बहुत पर हाथ नहीं आता है।
काश आ जाए यह हाथ मेरे भी ।
बंद कर लूं इसे मैं अपनी हथेलियों में।
जितना इस मनचली तितली रूपी वक्त को पकड़ती हूं मैं।
उतना ही दूर भागती है यह मुझसे।
जब जब लगा कि अब आई पकड़ में यह मेरे।
तब तब रेत की तरह फिसल गई हाथ से मेरे।
पर मन तो बावरा है मेरा जो देखे इसके लुभावने सौंदर्य को हाथ से जाता ही है फिसल।
मन में रख कर यह तमन्ना करता है फिर से कोशिश वह।
आज नहीं तो कल पकड़ ही लूंगी इस तितली को मैं।