वक्त
वक्त – वक्त का खेल यहाँ ,
वक्त हमेशा भुनाता रहता ,
वक्त किसी का मोहताज नहीं ,
यह अग्रसर बढ़ते रहता है।
लोक में वक्त निखिल आता है ,
कभी हँसता, कभी रुलाता ,
वक्त समग्र भु है
रंक को राजा गढ़ता
राजा को गढ़ता रंक है
सब वक्त का खेल यहाँ
वक्त के हम मोहताज है।
वक्त की केंद्र करने पर
वक्त भी तुम्हारा कद्र करेगा
नेकी, भला का कर्म करो
वक्त तुम्हें पूर्ण समर्थन देगा।
अच्छों के लिए अच्छा
बुरों के लिए बुरा वक्त
अच्छा – बुरा का खेल यहाँ
वक्त सबका बदलता है।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या