वक्त
उजड़े चमन की बुलबुलों से क्या गुफ्त़गू करें
मयकदे के शोर-ओ -शऊर से कहीं दूर हम चलें
शराब-ओ- शबाब रहा कभी मेरा शगल नहीं
वक्त गुजर गया बहुत चलो अब अपने वतन चलें
उजड़े चमन की बुलबुलों से क्या गुफ्त़गू करें
मयकदे के शोर-ओ -शऊर से कहीं दूर हम चलें
शराब-ओ- शबाब रहा कभी मेरा शगल नहीं
वक्त गुजर गया बहुत चलो अब अपने वतन चलें