वक्त से लड़कर अपनी तकदीर संवार रहा हूँ।
वक्त से लड़कर अपनी तकदीर संवार रहा हूँ।
क़भी इस वक्त का भी मैं शुक्रगुज़ार रहा हूँ।
ऐ मेरी किस्मत तूँ सो गई है कहाँ जाके,
कि तुझे एक अरसे से मैं पुकार रहा हूँ।
दिखावे की ज़िंदगी मैं कभी जी न सका,
मैं ताउम्र अपना ही किरदार रहा हूँ।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी