“वक्त निकल गया”
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जी ना सके जिंदगी, वक्त निकल गया
रेत का ढेर जैसे,मुट्ठी से फिसल गया
कद्र की नहीं, था जब तक पास अपने
मिट्टी का बना इंसा, मिट्टी में बदल गया
उड़ता रहा परिंदा, सूरज को नापने को
था मुगालता परों का,गर्मी से जल गया
उल्फत की नयी नयी,कहानी शुरू हुई थी
अजगर अमीरी का उसे भी निगल गया
वादे बड़े किये थे कसमें भी खूब खाई राणाजी
बाद जीतकर इलेक्शन वो नेता बदल गया
©ठाकुर प्रतापसिंह राणाजी
सनावद (मध्यप्रदेश )