वक्त थम सा गया है…
रगों में कतरा कतरा लहू, जम सा गया है ,
मुसाफिर रुका है या कही, खो सा गया है ।
चाँद सितारों से रोशन है ,दुनिया सारी ये
अमावस में चांद भी कही, गुम सा गया है ।
फिरते है क्यों मारे- मारे दर बदर यूँ सारे,
यहाँ का आदमी यायावर ,बन सा गया है ।
जीते मुल्क दुनिया भी जीती, मिला क्या ?
सिकंदर भी यहां से ,खाली- खाली सा गया है।
मुकद्दर मैं क्या है ,नही जानता यहाँ कोई
जाना भी तब जब वक्त, कहीं थम सा गया है।