वक्त तो वक्त है
********* वक्त तो वक्त है *********
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वक्त तो वक्त है आखिर गुजर जाता है,
जख्म कितना भी हो गहरा भर जाता है।
मलहम घाव भरने की न कहीं मिलती है,
दवा नहीं मिले तो बन नासूर जाता है।
समय की रफ्तार को कौन रोक पाया है,
गति के संग सर्वस्व ले बहा कर जाता है।
बहुत हो चुका कैद परिंदों को रिहा करो,
नहीं तो हर तरफ छा घोर अंधेर जाता है।
छोड़ कर यहीं पर ही सब कुछ जाना है,
इंसान क्यों लालच में यूँ बिखर जाता है।
मोह माया ने नचाया है दुनियादारी को,
जुबान से हर कोई झट से मुकर जाता है।
मनसीरत वक्त की कीमत को समझता है,
काल विकराल हो तो सब अखर जाता है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)