वक्त चला जायेगा
वक्त चला जायेगा
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वक्त कैसा भी हो
भला कब ठहरा है?
अच्छे दिन,सुनहरे पल भी
आखिर खिसक ही जाते हैं,
कठिन से कठिन समय भी
एक दिन चले ही जाते हैं।
माना की हालात गंभीर है
हर किसी में दहशत और
चेहरे पर खौफ की लकीर है,
जान बचाने की चिंता है तो
जीविका की लाचारी भी है।
पर ऐसा भी नहीं है कि
ये सब स्थाई है,
सच तो यह है कि
हमारी आँखे खुल जायें,
क्योंकि
प्रकृति की आँखे भर आई हैं।
अब मानवों को
जागने की जरूरत है,
कुदरत की व्यवस्था से
छेड़छाड़ की बजाय
सम्मान की जरुरत है।
हमनें भी तो प्रकति से
खूब खिलवाड़ किया है,
कुदरत की व्यवस्था का
जी भरकर उपहास किया है।
आज वक्त ने करवट क्या बदला?
तो हमारी जान पर बन आई
प्रकृति की पीड़ा हमें
कभी भी न समझ आई,
आज भी हम कहाँ समझते हैं?
अब भी तीसमारखाँ ही बनते हैं।
सब कुछ देख सुन समझ रहे हैं
फिर भी सीनाजोरी में पीछे नहीं हैं।
अपनी तो आदत है आरोप लगाने की
हमसे होशियार भला कौन है?
अपनी ही जान की फिक्र
भला कहाँ है?
अब भी समय है चेत जायें,
खुद को ही नहीं औरों को भी
बचाने का उपाय अपनाएं ।
वक्त मुश्किल जरूर है
पर ठहर नहीं पायेगा,
लेकिन हमारा घमंड
जरूर तोड़ जायेगा।
वक्त के साथ कदमताल
करना सीख लीजिए,
मुश्किल हालात में भी
जीना सीख लीजिए।
वक्त तो वक्त के साथ ही
यूँ भी चला जायेगा,
वक्त भला ठहर कर क्या पायेगा?
अच्छा है वक्त की नजाकत
समझ जायें हम सब,
वक्त तो अपनी पहचान
छोड़ते हुए ही जायेगा,
वक्त हमारी औकात तो
हमें बता ही रहा,
चलते चलते कुछ खट्टे मीठे
अनुभव भी दे जायेगा,
अपनी निशानी छोड़ ही जायेगा।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.