वक्त के थपेड़ों ने धकेला हूँ
**वक्त के थपेड़ों ने धकेला हूँ**
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चाहे दुनिया में मैं अकेला हूँ
वक्त के थपेड़ों ने धकेला हूँ
आदमी तो हूँ मै बड़े काम का
खैर लोगों के लिए झमेला हूँ
बेशक अपनों से धोखे ही मिले
गैरों के लिए जैसे मेला हूँ
अरमानों को पूरा करता रहा
जेब में चाहे पैसा न धैला हो
हर्षित हसीं पल मुझे नसीब नहीं
गमों को खींचने वाला ठेला हूँ
कभी कोई मेरे न काम आया
परिस्थितियों ने सदा मै पेला हूँ
जिसको जी जान से चाहते रहे
भंवरा सा बना मैं अलबेला हूँ
मोहब्बत प्रेम की बलि मांगती
बोझ से खाली खाली थैला हूँ
कुदरत की पूजा उपासना की
मनसीरत गुरु ना हुआ चेला हूँ
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)