वक्त की हम पर अगर सीधी नज़र होगी नहीं
वक्त की हम पर अगर सीधी नज़र होगी नहीं
तब तलक लगता हमें कोई सहर होगी नहीं
कर लिया है बंदिशों की कैद में अपना ये दिल
अब ज़माने को कोई इसकी खबर होगी नहीं
नफ़रतों का सिलसिला चलता रहेगा जब तलक
प्यार करने वालों की तब तक क़दर होगी नहीं
ज़ख्म ही नासूर बनकर कह रहे हैं चीखकर
दर्द के अंबार के सँग अब गुजर होगी नहीं
चोट खाई है जो दिल ने इश्क़ के मैदान में
अब दवा कोई भी इस पर कारगर होगी नहीं
इन दुखों को अब सुखों में ढालना होगा हमें
ज़िंदगी तो सिर्फ़ रो रोकर बसर होगी नहीं
राज़ अपने यदि सभी दिल में छिपा लें ‘अर्चना’
बात कोई भी इधर से फिर उधर होगी नहीं
डॉ अर्चना गुप्ता
18.07.2024