वक्त की साज़िश
पिता की मृत्यु के बाद 12 वर्ष तक मांँ को संभाला तथा छोटे भाई व बहन को खुद की संतान से बढ़कर परवरिश दी सौरभ ने।
सद्चरित्र व सुसंस्कृत सुदर्शन व्यक्तित्व युक्त निश्छल हृदय व सादगी की प्रतिमूर्ति सौरभ ने केवल इसलिए 12 वर्ष तक विवाह नहीं किया कि कहीं इन दोनों बच्चों के भविष्य पर कोई आंच न आ जाए।
विवाह के समय ही पत्नी से कह दिया – –
“ये दोनों भाई बहन नहीं दो बच्चे हैं हमारे ” पत्नी रमा ने यह बात सर माथे से लगाई व हर क्षण पति का साथ दिया।
दोनों भाई – बहन ने अपनी अपनी पसंद से लव मैरिज की। दुषचरित्र संदीप बड़े भाई के सरल व्यक्तित्व से नाराज रहता था और सदा उन्हें पलट कर जवाब देने व सदा भाई को नुकसान पहुंचाने के नुस्खे सोचता रहता था।
दोनों भाई – बहन ने उनकी इस नेकी का इतना अच्छा सिला दिया कि दोनों ने बड़े भाई से पूर्णतः रिश्ते तोड़ लिए। पहले पहले तो वे और पत्नी रमा जी हर छोटे बड़े त्योहारों व खास मौकों पर उनकी याद कर रोते।
सौरभ का पुत्र सुयश पुणे में बी. टेक कर रहा था। वहीं छोटे भाई संदीप की पत्नी सुधा की भांजी भी बी.टेक कर रही थी। संदीप व सुधा ने उसे सिखा पढ़ाकर सुयश के पीछे लगा दिया।
“हाय ! आय एम नीति। आय एम आॅल्सो फ्राम जैपुर। ”
“ओ…. ”
सुयश अपने पिता के ही समान एक सुसंस्कृत व सुदृढ़ चारित्रिक व्यक्तित्व का मालिक था। वह पिता की तरह दूरदर्शी था।
“हाय सुयश! आज शाम क्या कर रहे हो।”
“आज ब्लू हैवन पर डिनर पर चलें। ”
“आॅफ्कोर्स”
“व्हाईट नॉट”
सुयश दाल में काले की तलाश में था।
डिनर पर बातों ही बातों में पता चला कि वह लड़की तो सुधा चाची की बहन की बेटी है।
लगे हाथ सुयश ने भी खुश खबरी देते हुए नीति से हाथ मिलाया –
” खैर तुम भी मुझे बधाई दे ही दो। पापा मम्मी ने मेरी सगाई की तारीख मेरी बचपन की बेस्ट फ्रेंड सृष्टि के साथ फाइनल कर दी है और यह डिनर तुम्हें सरप्राइज गिफ्ट है।”
“कैसी लगी गिफ्ट???? ”
नीति अवाक।
सुयश ने चाचा चाची के मंसूबों पर पानी फेरकर दुखों की साजिश को नेस्तनाबूद कर पैरों तले रौंद डाला था।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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