“वक्त की रफ्तार”
न ही थमती न ही रूकती
जीवन में कहीं यह वक्त की रफ्तार
यूं ही चलती है
रेल के इंजन सी वारंवार
यह वक्त की रफ्तार
चाहे आदमी की स्थिति
चलायमान हो या न हो
पर निरंतर आगे बढ़ती रहती है
यह वक्त की रफ्तार
हर एक पल को छोड़ते हुए पिछे
चाहे कितने ही आए जीवन में
तमाम उतार-चढ़ाव
लेकिन यह वक्त की रफ़्तार
एक पल में आगे निकल जाती है
कुछ गुज़र जाते हैं ऐसे पल
जिसमें बचपने की कसक हो
या युवावस्था की हो कशिश
या फिर प्रोढ़ावस्था का हो
आगमन इन्हीं सब यादों
के झरोखों को मन का पिंजरा
कर लेता है कैद
लेकिन बिना रूके नदी बन
कल-कल बहती रहती है
यह वक्त की रफ्तार
यह वक्त का तकाज़ा है
समय के बहाव में बहते हुए ही
अच्छे और बुरे अनुभवों के साथ
हिम्मत को कर बुलंद इतना
बढ़ाते हैं हम हर कदम
पर कहीं रूकने का नाम न ले
यह वक्त की रफ्तार
कभी खुशी के पलों को
इच्छा होती है वहीं रोकने की
लेकिन अगले ही पल
गमों के बादल भी अपना
रंग बिखेर ही देते हैं
यह पल मानों ऐसा लगे
जल्दी बीत ही नहीं रहा
मनवा रह जाता है सोचता
पर वक्त की रफ्तार आगे
की ओर रास्ता नाप ही लेती है
इस संसार में दोस्तों
प्रतिदिन सूरज का नए सबेरे के
के साथ नया संदेश लेकर उगने
चंद्रमा का तारों के साथ अठखेलियां
करते हुए चांदनी बिखेरने
की निरंतरता बनाए रखने में
सुबह-शाम और दिन-रात
अपनी भुमिकाओं में है बरकरार
सिर्फ मानव ही जीवन-मृत्यु के
इस खेल में शामिल होकर
एक दिन छोड़ जाता है
अमिट छाप इस धरती पर
असीम यादों संग हो जाता अमर
फिर भी नही थमती न ही रूकती
जीवन में कहीं यह वक्त की रफ्तार
बस में नहीं किसी के भी मुट्ठी में बंद कर लें इसे
वह तो निरंतर गतिशील होकर ही मानती है
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल