वक्त का मंज़र
मानव तू अपने को बड़ा समझता है
हर गलतियां कर खुद को खरा समझता है,
जरा वक्त का यह मंज़र देख।
तेरी ही करनी है यह
चाहे बवंडर हो या तूफान
यह घिर आए कोई आपदा निशान
जरा वक्त का यह मंज़र देख।
क्या कहूं निस्तब्ध हूं?
हर लब्ज से खामोश हूं?
जरा वक्त का यह मंज़र देख।
प्रकृति की आगे किसी की चलती नहीं
और वक्त है कि यूं ही ढलती नहीं
जरा वक्त का यह मंज़र देख।
✍?अमन कुमार होली
स्वरचित मौलिक रचना ©
जिला:- साहिबगंज झारखंड