वक्त का क्या है
वक्त का क्या है ,जाने कब बदल जाए।
छांव में चलते ,जाने कब धूप निकल आए।
जाने कब वक्त का साथ तुझे मिला रहे
जाने कब तुझे इस वक्त से गिला रहे।
वक्त में कभी पतझड़,कभी बहार मिले
आज दौड़ते,भागते ,कल हाथ न हिले।
सबसे बुरी होती है ,ये बुरे वक्त की मार
इस बात से कोई भी ,कर न सके इंकार।
वक्त का क्या है ,बस कहने की है बात
कुछ भी हाथ नहीं,जब वक्त दे न साथ
सुरिंदर कौर