वक्त और कुदरत
कभी कभी लगता है कही दूर निकल जाऊ…अपने आप को तलाशने…
जहाँ मेरे अलावा कोई भी न हो अपना… एक ऐसे सफर पर जहाँ मैं कुछ पल ज़िन्दगी के अपने साथ बिता सकूँ…
हम सब जन्म लेते ही एक किरदार में बंध जाते है…
किसी का बेटा किसी का भाई किसी का कुछ बन कर और फिर बढ़ने लगते हैं रिश्तों के काफ़िले….
हम इन रिश्तों के अलावा और भी कई चरित्र निभाने लगते है…
हलाकि ये हम नही तय करते हैं की क्या करना है जिंदगी में…
इन सब रिश्तेदारी और दुनियादारी में हम कुछ ऐसे उलझते हैं की खुद को ही अनदेखा कर देते हैं…
इस कदर मसरूफ़ हो जाते है ज़िन्दगी बिताने में की जीना ही भूल जाते हैं…
उस एक पल को तलाश लेना चाहता हूँ जब अपने मन की आवाज़ को सुन सकूँ… घर ,ऑफिस , अपनों , सपनों फ़िक्र जो साथ लिए फिरता हूँ
उसे युही छोड़ के कुछ पलों के लिए ही सही बेफिक्र हो कर सांस ले सकूँ…
किसी काम को करने की जल्दबाज़ी ना हो आराम से सुबह थोड़ी देर तक एक नींद लूँ…
माँ की गोद में सर रख कर ज़िंदगी के सारे दुःख दर्द भूल जाऊ…
ऋषिकेश या हरिद्वार में गंगा की आरती में शामिल हो कर अपनी आँखे बंद कर के गंगा की लहरों और उसकी शीतलता को महसूस करूँ…
बारिश की बूंदों और हवा के मद्धम संगीत को सुन सकूँ .
चल पडू ऐसे किसी खूबसूरत सफर पर जहाँ मैं ये जान पाऊं की भागती दौड़ती ज़िंदगी के परे भी एक जीवन है , जो प्रकृति ने हमे दिया है…
वो जो हमको हमसे जोड़ता है…और शायद यही अंतिम सत्य है..!