वक़्त…
वक़्त कर देता है अकसर मजबूर
तोहमत ना यूँ लगाया कर
आँखें नम हो जाती हैं अकसर
अश्क़ों को यूँ ना बहाया कर
शब्दों को सजा के शब्द लड़ी में
कोई ग़ज़ल-गीतिका बनाया कर
दबे अहसास सौ ना जाएँ कहीं
अरमानों को ज़रा जगाया कर
सुर ताल में गाना चाहे नहीं आता
थोड़ा सा तो गुन गुनाया कर…
सपने तो इक दिन हक़ीक़त बनेंगे
थोड़ा सपनों को रोज़ सजाया कर
वक़्त कर देता है अकसर मजबूर
तोहमत ना यूँ लगाया कर
आँखें नम हो जाती हैं अकसर
अश्क़ों को यूँ ना बहाया कर
-राजेश्वर