*** ” वक़्त : ठहर जरा.. साथ चलते हैं….! ” ***
** ऐ गुजरते हुए वक़्त.. ठहर जरा….
मेरे करीब आ…. साथ चलते हैं ।
आने वाले इस पल को…
हम दोनों साथ में गले लगाते हैं ।
खट्टे-मीठे यादों को….
कुछ पल गुनगुनाते हैं ।
सपने हैं कुछ अपने…..
उसे दिल में उकेर…
मन को कुछ बहलाते हैं ।
ये मन की , एक दर्पण है जो….
कुछ धुंधली-सी होती जा रही है….
अपनी मुस्कुराहट- स्पर्श से…
चमकीली उसे कर जाते हैं ।
** देखो…
सब कोई गुमसुम-से हैं यहाँ…..!
देख जरा… कोहरे में सोये हैं पेड़ ।
पत्ता-पत्ता नम है ….
और क्या बताऊँ तुम्हें…
यह सबूत क्या कुछ कम है ।
लगता है लिपटकर टहनियों से….
रोये हैं बहुत पेड़ ।
भौरों ने फूलों से भी मुंह मोड़ लिया है…
कोयल ने कुहूकना छोड़ दिया है ।
और पंछियों ने भी शायद…!
घोंसला बनाने से….
नाता ही तोड़ लिया है ।
** ऐ वक़्त… आ
कुछ पल ठहर जरा….
साथ चलते हैं ।
एक नया पथ गढ़ते हैं ।
ऐ गुजरते हुए वक़्त शुक्रिया…..!
जो कुछ मेरे साथ रहा….!
हर परिस्थितियों में….!
अनुकरणीय अनुकूल प्रकृति में….!!
विकार-विस्मित विकृतियों में…..!!!
ऐ गुजरते हुए वक़्त शुक्रिया……!
मुझे कुछ खट्टे-मीठे अनुभव देने के लिए..
मुझे कुछ और बेहतर बनाने के लिए….!
मगर…..
तूझसे एक गुज़ारिश है….!
कुछ पल ठहर जरा….!!
साथ चलते हैं……!!!
कुछ पल ठहर जरा….!!
साथ चलते हैं…….!!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग. )
१० / १२ / २०२१