बंशीधर श्याम
आन बसो मेरे नयन, हे बंशीधर श्याम।
नैना बरसत हर घड़ी, लेकर तेरा नाम।। १
माँझी बनकर श्याम जी, भव से पार उतार।
मैं हूँ तेरी सांवरे, सुन लो हृदय पुकार।। २
मोर मुकुट तन काछनी, घुँघराले से केश।
गिरधर मीरा को मिले, धर नटवर का वेष।। ३
ढूंढ़ रही मैं सांवरा,धर कर जोगन वेश।
ढूंढ़-ढूंढ़ कर युग गया, श्वेत हो गये केश।। ४
होठ लगाई बाँसुरी, ठहर गया बृजधाम।
लगी थिरकने राधिका, मुस्काते घन- श्याम।। ५
कर देती बेचैन है, बंसी तेरी श्याम।
रोम-रोम में भर गया, केवल तेरा नाम।। ६
हुई दिवानी बावली, सुन बंसी की तान।
कृष्णा तेरी बाँसुरी, लेगी मेरी जान।।७
-लक्ष्मी सिंह