वंशवाद का भूत
पैदा फिर से हो गया ,…. वंशवाद का भूत ।
सर पर जिसका जोर से, मार दिया है जूत।
मार दिया है जूत , ..पिला जूते को पानी ।
वही पुराना खेल, …चाल फिर वही पुरानी।
कह रमेश कविराय, दिया ये कैसा ओहदा ।
बंजर है जब खेत , …फसल हो कैसे पैदा । ।
रमेश शर्मा