वंदना
अपने ज्ञान का ज्योति इधर भी फैला,
मां तेरे शरण में हम आये अनाथ
दोनों हाथ फैलाकर मांगे हम भिक्षा दान
मां, झोली में भर दे तुम अपना प्यार
मिटा दें अंधकार ,सारी सृष्टि का,
उज्जल कर माते जग को देकर ज्ञान,
बदलेगे हम अपनी हाथों कि रेखा
मां जो तु रहेगी साथ हमारे,
कृपा कि तुम्हारी है ज़रूरत हमारी
इस जग कि जिम्मेदारी हवाले तुम्हारे
बदल दे इन मूर्खो कि ज्ञान कि पिटारी,
करे ना हिंसा, ना उपद्रव,ऐसी मती हो जग कि सारी।