लफ़्ज़ों का हुस्न
22 + 22 + 22 + 22 + 22
इक शा’इर लफ़्ज़ों का हुस्न निखारे
एक मुसव्विर ज्यों तस्वीर सँवारे
शायद चाँद उतर आया है ज़मीं पे
यूँ काजल आँखों का हुस्न निखारे
काश! मिलन हो, बदरा बरसे जमके
तब आँखें बोलें—सजनी रुक जा रे
काश! जहां में लोग रहें मिल-जुलके
सब ही अल्फ़ाज़ कहें मीठे प्यारे
काश! व्यवस्था अब ऐसी हो कोई
जो मुफ़लिस के कर दे वारे न्यारे
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