लौट चल जिंदगी
आये हैं रूह अपनी जहाँ छोड़कर
लौट चल जिंदगी फिर उसी मोड़ पर
गोद में लेटकर लोरियाँ फिर सुनें
ख्वाब परियों से मिलने का फिर से बुनें
फिर से आँचल की हमको हवा चाहिए
माँ के दिल से निकलती दुआ चाहिए
गिरने पर जो उठा लेती थी दौड़कर
लौट चल जिंदगी………………
लोग मतलब से जब दिल लगाने लगे
दोस्त बचपन के फिर याद आने लगे
मर चुका हूँ जरा सा जिला दे मुझे
खेल बचपन के फिर से खिला दे मुझे
भागा था मैं जहाँ गिट्टियाँ फोड़कर
लौट चल जिंदगी……………..
स्लेट-पट्टी लिए पाठशाला चलें
संग गिनती चली वर्णमाला चले
ज्ञानवाली गुरू जी की वो घुट्टियाँ
वो खुशी खोजें होती थी जब छुट्टियाँ
मारते जब गुरू जी छड़ी तोड़कर
लौट चल जिंदगी……………..
वक्त़ की जाने कैसी ये आँधी चली
खो गए रास्ते खो गयी वो गली
तितलियों भँवरों के बाग में फिर हिलें
पाँच-दस पैसों का फिर खजाना मिले
रखते थे गुल्लकों में जिसे जोड़कर
लौट चल जिंदगी…………….
न तो थीं ख्वाहिशें और न कोई डर
हर परेशानी से रहते थे बेखबर
अँगुलियों को पकड़कर चलाता कोई
भूखे रहकर था हमको खिलाता कोई
सोते थे फिक्र दुनिया की सब छोड़कर
लौट चल जिंदगी……………..